
संधारित्र किसे कहते हैं, कंडेसर क्या है, what is capacitor
संधारित्र :- दो बराबर परन्तु विपरीत आवेश वाले एक दूसरे के निकट स्थित चालकों का युग्म है जिससे एक चालक की धारिता में बिना उनका आकार बढ़ाए बृद्धि की जाती है उसे संधारित्र कहते है ।
किसी चालक की धारिता उसके आवेश ग्रहण करने की क्षमता को बताती है।
चालको के बीच में विद्युत छेत्र आवेश Q के समानुपाती होगा अतः उनके मध्य विभव भी Q के समानुपाती होगा अर्थात

यहां V दो बिंदुओं के मध्य विभांतर है और C को संधारित्र की धारिता कहते है ।
Note :- संधारित्र की धा Q या V पर निर्भर नहीं है बल्कि उन चालको के आकार आकृति मध्य की दूरी तथा उनके मध्य रखे परावैधुत माध्यम पर निर्भर करती है ।
संधारित्र का मात्रक sandharitr ka SI matrak
इसका SI मात्रक कूलाम/वोल्ट होता है , या फैराडे(F) होता है ।
एक फेरेड कि परिभाषा
यदि चालको को एक कूलाम आवेश देने पर उनके मध्य एक वोल्ट का विभांतर उत्पन्न हो तो उसकी धारिता एक फैरेड होगी ।
यदि संधारित्र की धारिता अधिक करनी हो तो विभव का मान कम जबकि आवेश का मान अधिक लेना होगा।
लेकिन प्रबल विद्युत छेत्र चारों ओर की वायु को आयनीकृत करके उत्पन्न आवेशो को त्वरित कर सकता है ।
जो विजातीय आवेश पट्टिकाओ पर पहुंचकर उन्हें आंशिक उदासीन कर सकते है ।
अर्थात संधारित्र का आवेश दोनों पट्टिकाओ के बीच माध्यम की विद्युत रोधी क्षमता में हानि के कारण कम हो सकता है ।
परावैधुत सामर्थ:- वह अधिकतम विद्युत छेत्र जिसे कोई परावैधुत माध्यम विना भंजन ( विद्युत रोधी गुणधर्म ) के सहन कर सकता है उसे उस माध्यम की परावैधुत सामर्थ कहते है ।
वायु के लिए इसका मान लगभग 3×10⁶ V/m होती है ।
जैसे :- दो चालको के मध्य 1cm दूरी रखे तो इस विद्युत छेत्र से 3×10⁴ V/m का विभांतर उत्पन्न होगा ।
सामान्य रूप में 1 फैरड का संधारित्र बनाना मुश्किल है अतः इसके स्थान पर इसके छोटे मात्रक लिए जाते है ।
1 mF = 10⁻³ F
1 μF = 10⁻⁶ F
1 PF = 10⁻¹² F
फेरड की विमा [ M⁻¹L⁻²T⁻⁴A² ] होती है ।
समांतर पट्टिका संधारित्र
इस संधारित्र में दो समांतर चालक पट्टिकाओ को एक दूसरे के पास रखते है तथा इनके मध्य दूरी d ली जाती है।
माना प्रत्येक पट्टिका का छेत्रफल A है तथा इन पर आवेश Q तथा -Q है ।
इस स्थिति में d का मान A की तुलना में बहुत कम है तो इस स्थिति में एकसमान आवेशित प्रष्ठिय घनत्व σ लेने पर विद्युत छेत्र अनंत समतल चादर के समान ले सकते है ।

इस स्थिति में पट्टिका 1 के ऊपर की ओर ब्राह्मीय छेत्र

पट्टिका 2 के नीचे की और विद्युत छेत्र

लेकिन इन पट्टिकाओ के मध्य के छेत्र में कुल विद्युत छेत्र इन दोनों के योग के समान होगा

इस स्थिति में पट्टिकाओ के किनारों पर छेत्र रेखाएं बाहर ही ओर मुड़ जाती है इस प्रभाव को छेत्र का उपांत प्रभाव कहते है ।
इससे यह भी प्रदर्शित होता है कि समस्त पट्टिका पर प्रष्ठिय आवेश घनत्व वास्तव में एक समान नहीं होता है ।
लेकिन d का मान छेत्र A से बहुत कम होने के किनारों से अधिक दूरी पर इस प्रभाव को नगण्य मान लेते है ।
विद्युत छेत्र के कारण प्लेटो के मध्य विभांतर V हो तो एकांक धनावेश को एक प्लेट से दूसरी प्लेट तक ले जाने में किया गया कार्य

इससे यह सिद्ध होता है कि संधारित्र की धारिता निकाय के आकार आकृति या प्लेटो के मध्य दूरी पर निर्भर होता है।
Que :- संधारित्र की धरीता 1 फैरड क्यों नहीं लेते है ?
Ans:- माना संधारित्र की प्लेटो के मध्य दूरी 1cm है तो उसका क्षेत्रफल

यह मान बहुत अधिक है अतः धारीता के छोटे मात्रक लेते है ।
संधारित्र की धारिता जब प्लेटो के मध्य कोई परावैधुत रखते है
ऐसे पदार्थ जो विद्युत रोधी होते है उन्हें परावैधुत पदार्थ कहते है इनमें इलेक्ट्रॉन नाभिक के साथ दृढ़ता से बंधे हुए होते है ।
जब इन पदार्थों को चालक की आवेशित प्लेटो के मध्य रखते है तो ध्रुवण के कारण परावैधुत पट्टिका के एक पृष्ठ पर ऋणावेश तथा दूसरे पृष्ठ पर समान मात्रा में धनावेश उत्पन्न हो जाता है।
इसे निम्न प्रकार से प्रदर्शित कर सकते है

यदि चालक की प्लेटो के मध्य निर्वात होने पर विद्युत छेत्र E₀ हो तो पट्टिकाओ के ऊपर तथा नीचे कुल विद्युत छेत्र शून्य जबकि बीच में

यदि निर्वात की स्थिति में धारिता C₀ हो तो

परावैधुत के लिए धारिता
माना पट्टिकाओ के मध्य कोई परावैधुत रखा गया है तथा विद्युत छेत्र के कारण यह परावेधुत धुर्वीत हो जाता है।
माना इसके प्रष्ठिय आवेश घनत्व क्रमशः -σₚ और σₚ हो तो पट्टिकाओ के नेट आवेश घनत्व में कमी हो जाएगी तब पट्टिकाओ पर नेट आवेश घनत्व

तो विद्युत छेत्र

रेखिक पट्टिकाओ के लिए σₚ पट्टिकाओ के आवेश घनत्व σ के अनुक्रमानुपती होता है यदि परावैधुत का अभिलक्षण k हो तो

यहां kε₀ को माध्यम का परावैधुतांक कहते है

अतः किसी संधारित्र की प्लेटो के मध्य परावैधुत रखने पर उसकी धारीता में वृद्धि होती है ।
संधारित्रों का संयोजन
संधारित्रों का संयोजन निम्न दो प्रकार से किया जा सकता है-
श्रेणीक्रम संयोजन
इस स्थिति में एक संधारित्र की ऋणात्मक पट्टिका दूसरे संधारित्र की धनात्मक पट्टिका से जुड़ती है ।
तथा C₁ संधारित्र की पट्टिका को +q आवेश तथा C₃ संधारित्र की पट्टिका पर -q आवेश दिया जाता है ।
इस स्थिति प्रत्येक संधारित्र की दोनों पत्रिकाओं पर आवेश समान रहता है ।
माना उन संधारित्रों की धारिता C₁, C₂ ,C₃ ओर उनके विभव V₁ V₂ V₃ है । माना उसका कुल विभव V तथा कुल धारिता C है तो


कुल विभव सभी विभवों के योग के समान होगा

अतः संधारित्रों के श्रेणीक्रम संयोजन में तुल्य धारिता सबसे छोटे संधारित्रों से भी कम होती है l
इसी प्रकार n संधारित्रों के लिए

समांतर क्रम संयोजन
इस स्थिति में सभी संधारित्रों की एक पट्टिका एक साथ जबकि दूसरी पट्टिकाए एक साथ जोड़ी जाती है ।
उस स्थिति में पट्टिकाओ पर पर विभव एक समान परन्तु आवेश अलग – अलग होता है ।
माना तीन संधारित्र जिनकी धारिता क्रमशः C₁ , C₂ ,C₃ है जिनकी पट्टिकाओं पर +Q तथा -Q आवेश दिया जाता है
जिसके कारण पट्टिकाओं पर विभव समान परन्तु आवेश अलग – अलग होता है ।

यदि इनकी तुल्य धारिता C हो तो
Q = CV, Q₁ = C₁V ,
Q₂ = C₂V , Q₃ = C
Q = Q₁ + Q₂ + Q₃
CV = C₁V + C₂V + C₃V
CV = V(C₁ + C₂ + C₃)
C = C₁+C₂+C₃
अतः समांतर क्रम संयोजन में तुल्य धारिता सबसे बड़ी धारिता से भी बड़ी होती है । यदि n संधारित्र ले तो C = C₁+C₂+C₃+…….+Cₙ