संरक्षी बल
जब किसी संरक्षी बल छेत्र जैसे गुरूत्वीय बल स्थिर विद्युत बल आदि में ब्राहिय कार्य के द्वारा किसी कण को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक विस्थापित करते हैं तो ब्राहिय बल द्वारा किया गया कार्य उस कण की स्थितीज़ ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है ।तथा यह कार्य पथ पर निर्भर नहीं करता है बल्कि प्रारम्भिक तथा अंतिम स्थिति पर निर्भर करता है।
किसी आवेश के द्वारा उत्पन्न विद्युत छेत्र सदैव संरक्षी बल छेत्र होता है ।
स्थिर विद्युत विभव तथा विभांतर
किसी आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक छेत्र के विरूद्ध विस्थापित करने में किए गए कार्य तथा परीक्षण आवेश के अनुपात को उन बिंदुओं के मध्य विभांतर कहते हैं।

अतः एकांक धनावेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक छेत्र के विरूद्ध करने में छेत्र के विरूद्ध किया गया कार्य विभांतर के समान होता है।यदि किसी आवेश +q को बिंदु R से P तक किसी बाहरी बल Fₑₓₜ की सहायता से विद्युत छेत्र में ले जाते हैं तो अल्प विस्थापन dr के लिए किया गया कार्य


इसकी दिशा छेत्र की दिशा के विपरीत होती हैं

इस स्थिति में किया गया कार्य एं दोनों बिंदुओं पर स्थितिज ऊर्जा में अंतर के समान होता है अर्थात

इससे यह प्रदर्शित होता है कि कार्य केवल अंतिम तथा प्रारम्भिक स्थितियों पर निर्भर है तथा किया गया कार्य केवल स्थितीज ऊर्जा के अंतर पर निर्भर करेगा उसके मानो पर नहीं।
किसी बिंदु आवेश के कारण उत्पन्न विद्युत छेत्र में किसी बिंदु पर विभव :-
मान मूल बिंदु पर कोई धनावेश +Q स्थित है तथा इससे r दूरी पर स्थित किसी बिंदु P पर विभव ज्ञात करना है । इसके लिए एकांक धनावेश को अनन्त से इस बिंदु तक लाने में किया गया कार्य ज्ञात करना होगा ।

पथ के किसी बिंदु P’ पर +Q आवेश के कारण एकांक धनावेश पर बल =


विभव की परिभाषा से

तो किसी बिंदु पर विभव जिसकी आवेश Q से दूरी r है
