
आवर्ती गती
आवर्ती गती किसे कहते है, आवर्ती गती क्या है,aavrti gati in hindI, वह गती जिसमे कोई बस्तु एक निश्चित समयांतराल के बाद अपनी स्थिति को दोहराती है, आवर्ती गती कहलाती है।
आवर्ती गती का मतलब ये नहीं कि कोई वस्तु वृताकर पथ पर गती कर रही हैं ये सरल रेखीय भी हो सकता है।
आवर्त काल
आवर्त काल किसे कहते हैं, आवर्त काल क्या है, aavrt kal in Hindi, वह समयांतराल जिसमे कोई वस्तु अपनी पूर्व स्थिति को दोहराती है, आवर्त काल कहलाता हैं।
आवर्ती गती के उदाहरण :-झूले का झूलना , किसी पदार्थ के अंदर उपस्थित परमाणु भी आवर्ती गती करते हैं। सभी ग्रहों का सूर्य(sun) के चारो और चक्कर लगाना भी आवर्ती गती है। प्रथ्वी का आवर्त काल 365.5 दिन का है। ह्रदय की धड़कन भी आवर्ती गती का उदाहरण है।
काम्पनिक गती या दोलन गति आवर्ती गती
दोलन गती किसे कहते हैं, दोलन गती क्या है, जब कोई वस्तु या पिंड की अपनी माध्य (मूल) स्थिति के इर्द – गिर्द ( ईधर – उधर ) गति होती हैं तो इस प्रकार की गति को काम्पनिक गति या दोलनी गति कहते है।
जैसे:- स्प्रिंग की गति, मशीन की सुई गति,लटके हुए सरल लोलक की गति।
Note1 :- माध्य स्थिति या मूल स्थिति से मतलब यह कि एक ऐसा बिंदु जिसके इधर – उधर गति होती है, यदि कोई पिंड ऊपर जाएगा फिर माध्य स्थिति में बापिस आगे फिर नीचे जाएगा फिर बापिस माध्य स्थिति में आयेगा। ये गति चलती रहती है।
Note2 :- सभी दोलन गती आवर्ती गती है लेकिन सभी आवर्ती गती का होना आवश्यक नहीं है।
Note3 :- दोलन गती में पिंड पर माध्य स्थिति की और एक बल कार्य करता है, जिसकी वजह से पिंड में कम्पन होने लगते है।
सरल लोलक (पेंडुलम) आवर्ती गती
सरल लोलक किसे कहते हैं, सरल लोलक क्या है, पेंडुलम का अर्थ ” लटकना ” होता है। जब कोई विंदुबत पिंड को एक बहुत पतली तथा घर्षण रहित डोरी से बांध दिया जाए तथा बिंदुबत पिंड पर कोई घर्षण नहीं लगे, तब इसे हम सरल लोलक कहते है।
लेकिन इस प्रकार का सरल लोलक बनाना मुश्किल है ये सिर्फ एकमात्र कल्पना है कोई बिना भार का बिंदूबत पिंड तथा बिना भार की कोई डोरी मिलना मुश्किल है
जिस वजह से घर्षण को भी शून्य नहीं कर सकते है।इसको इस प्रकार से बनाया जाता है जिससे पेंडुलम स्वतंत्र रूप से गती सके ।
जब पेंडुलम को माध्य स्थिति से विस्थापित करके छोड़ते हैं तो पेंडुलम पर प्रत्यानयन बल कार्य करता है जो पेंडुलम को माध्य स्थिति में लाने का प्रयास करता है। जिससे पेंडुलम माध्य स्थिति के ईधर उधर गति करता है।
पेंडुलम को एक चक्कर पूरा करने में लिया गया समय को आवर्त काल कहते हैं।
उपयोग:- एसीलेरोमीटर बनाने में ,भूकंपमापी बनाने में, पेंडुलम वाली घडी के निर्माण में, समय की गणना करने में , सरल लोलक का उपयोग किया जाता है।
सरल लोलक का आवर्त काल
लाेलक के द्वारा एक दोलन को पूरा करने में लगा समय को आवर्त काल कहते हैं। इसे T से प्रदर्शित करते हैं।
आयाम :- सरल लोलक के द्वारा माध्य से तय की गई अधिकतम दूरी को, आयाम कहते है। आयाम की इकाई मीटर होती हैं।
आवृति:- सरल लोलक के द्वारा 1 सेकंड मे पुरे किए गए दोलनो की संख्या को आवृति कहते है। इसे हम n से प्रदर्शित करते हैं।आवर्ती की इकाई हर्टज (Hz) होती है।
सेकेंड लोलक
सेकेंड लोलक किसे कहते हैं, सरल लोलक क्या है, सरल लोलक जिसका आवर्त काल अचर हो, सेकेंड लोलक कहलाता हैं। सेकेंड लोलक का आवर्त काल 2 सेकेंड का होता है तथा आवृति ½ सेकेंड होती हैं।
सेकेंड लोलक का उपयोग
समय की गणना करने में , मौसम विभाग में,
सरल आवर्ती गती
सरल आवर्ती गती किसे कहते है, सरल आवर्ती गती क्या है, जब कोई वस्तु किसी माध्य स्थिति के ईधर उधर सरल रेखा में गति करती हैं, उसे सरल आवर्त गति कहते हैं।
इस स्थिति में काम करने वाला प्रत्यानयन बल उस वस्तु की माध्य स्थिति से कण का विस्थापन के समानुपाती होता है।
प्रत्यनयन बल के कारण लोलक की गति बढ़ती है। वह माध्य स्थिति के ईधर उधर गती करता रहता है। जब पिंड माध्य स्थिति से अधिकतम दूरी पर होता है तो प्रत्यानयन बल का मान अधिकतम होता है।
जब पिंड माध्य स्थिति की और आता है तो प्रत्यानयन बल कम होता जाता है तथा माध्य स्थिति पर जाने पर प्रत्यानयन बल का मान शून्य हो जाता है। यदि ऊर्जा में कमी नहीं ही तो ये गति निरंतर चलती रहेगी।
सरल आवर्ती गतीके उदाहरण
सरल लोलक की गति, सेकेंड लोलक की गति, एक समान व्रतीय गति, आयाम और गुरूत्वीय त्वरण पर सरल आवर्त गति का मान निर्भर नहीं होता है।
तरंग गति
तरंग गती किसे कहते है, तरंग गती क्या है,जब कोई माध्यम में विक्षोप का निर्माण होता है तो उसे तरंग गती कहते हैं। यदि ये तरंग एक निश्चित चाल से चलती है तो इसे हम तरंग गति के नाम से जानते है।
जैसे:- किसी झील में पत्थर फेंकने पर एक विक्षोंप का निर्माण होता है। जहा पत्थर जाकर गिरता है वहां का पानी ऊपर नीचे की और होने लगता है जिससे चारो और एक वृतीय पथ उत्पन्न होकर आगे बढ़ता है।
विक्षोप केंद्र बिंदु से बहार की और फैलता है, इस प्रकार विक्षोप का आगे बढ़ने को ही तरंग गति कहते है।
जब हम किसी रस्सी के एक सिरे को स्थिर रखकर दूसरे सिरे को झटके देते हैं तो रस्सी मे भी विक्षोप आगे बढ़ते नजर आते हैं।